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वंदना वेजिटेरियन कौंसिल

अच्छे स्वास्थ्य का आधार शुद्ध शाकाहार

वंदना वेजिटेरिअन कौंसिल में आपका स्वागत है। आइये हम सब मिलकर सभ्य सुसंस्कृत समाज के लिए एक ऐसी विज्ञान सम्मत "आहार संहिता" तैयार करने का सक्रिय प्रयास करें जो मानव को स्वस्थ्य सुखी और दीर्घजीवी बनाए।

मान्यवर,

तथ्य:- अनादि काल से ही विश्व में आहार व्यवस्था पर बहस होती आ रही है। समय-समय पर शाकाहारी और मांसाहारी वर्ग अपनी अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के प्रयास करते रहे हैं। शिक्षा के प्रचार प्रसार के साथ ही विश्व में आहार व्यवस्था पर किये गये अनेक वैज्ञानिंक अनुसंधान और शोध ने हर स्थिति में शाकाहार को ही स्व्स्थ्य, सुखी और दीर्घजीवी समाज के लिए सर्वेत्तम आहार माना है। इतिहास साक्षी है कि सभ्य, स्वस्थ्य, सुखी, और दीर्घजीवी समाज के निर्माण के लिए महापुरूषों ने न केवल शाकाहार अपनाया है अपितु जीवन भर समाज में शाकाहार को स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

दरअसल प्रकृति ने प्रत्येक देह रचना के अनुसार ही आहार की व्यवस्था की है। मानव समाज की शारीरिक संरचना और पाचन तंत्र केवल, अन्न, फल और शाक-सब्जियों के लिए उपयुक्त है, इसलिए हमें प्रकृति की व्यवस्था की ही अनुसरण करना चाहिए। फिर शाकाहारी आहार सामाग्रियों में तो प्रोटीन, वसा, विटामिन्स और अन्य सभी पोषक तत्व भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। यह वैज्ञानिक सत्य है कि स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ्य और सकारात्मक विचार पोषित हो सकते हैं और और विचारों की प्रचंड शक्ति ही हमारी सफलता की मूलकारक है, जिसकी निरंतरता केवल शाकाहर के सेवन से ही संभव है।

विधाता ने मनु्ष्य को विशेष बुद्धि प्रदान कर, समस्त प्राणियों का हित रक्षक बनाया है, किन्तु समस्त प्राणियों का हितरक्षक मनुष्य ही आज भूख मिटाने जैसे अपने छोटे से स्वार्थ के लिए प्रतिदिन निरिह प्राणियों की, यहाँ तक कि गौमाता की भी हत्या करने पर उतारू हो गया है। हमें समझना चाहिए कि जिस प्रकार हमें पीड़ा का अनुभव होता है, उसी प्रकार अन्य प्राणी भी पीड़ा का अनुभव करते हैं। महज अपने स्वार्थ के लिए निरीह प्राणियों का वध करना महापाप और सर्वथा ताज्य है। यह सुविजित है कि हत्या या मृत्यु के बाद जीव-जन्तु में कुछ घंटों मे ही विकृति (सड़ांध) आ जाती है, ऐसे में सड़ते हुए मांस का आहार कैसा?

शाकाहार ही क्यों?

इसलिए मांसाहार को हमारे सभी धर्म शास्त्रों में वर्जित किया गया है। एख जीव की हत्या कर उसे भोज्य पदार्थ बनाने को अब विज्ञान भी नकारने लगा है। हिंसा मांसाहरी पशुओं का गुण है, मानव का नहीं ।

श्रेष्ठता प्राप्ति के मार्ग में साकाहार अत्यन्त महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह इसलिए कि हमसब जानते हैं कि " जैसा खाएंगे अन्न वैसा बनेगा मन" इसलिए सुशांत, स्वस्थ्य और विकार रहित मन के लिए शाकाहार ही एक मात्र वैज्ञानिक उपाये है।

शाकाहार को सात्विक आहार माना गया है। और सातिवकता के बिना किसी भी क्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्ति संभव नहीं है। यह अनुभवजन्य तथ्य है कि दुनिया के सफल औऱ श्रेष्ठ लोगों की सूची में शाकाहारी व्यक्तियों की संख्या ज्यादा है। विज्ञान मानता है कि शाकाहार से मन शांत, सहज और विकार रहित रहता है। श्रेष्ठता प्राप्ति के लिए मन की यह अवस्था जरूरी है।

श्रेष्ठता और शुचिता (पवित्रता) का घनिष्ट संबंध है। बिना शुचिता के श्रेष्ठता प्राप्त नहीं हो सकती है और शुचिता शाकाहार से ही संभव है। फिर शाकाहार में भी सभी पोषक तत्व बरपूर मात्रा में होते हैं और शाकाहारी व्यक्ति दीर्घायु होता है।

श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए शाकाहार इसलिए भी आवश्यक है कि श्रेष्ठता प्राप्ति के मार्ग में हिंसा और हिंसक सोच त्याज्य है। इतिहास गवाह है कि इस धरती पर जो भी श्रेष्ठ महापुरूष हुए है उनमें से पूजनीय श्रेणी में केवल वे ही सम्मिलित है जो शुद्ध शाकाहारी थे। इसमें हजारों लोगों की लम्बी सूची है जिनमें से कुछ अतिप्रमुख नाम तथा सुकरात अलबर्ट आइन्सटीन, महात्मा गाँधी, रवीन्द्रनाथ टैगौर, प्रो.सी.वी.रमन, जार्ज बर्नाड शॉ, हेनरी फोर्ड, फ्रेंज काफ्का लियो टाल्सटाय, ए.पी.जे अब्दुल कलाम आदि उल्लेखनीयहै। अब तो परम श्रीमुजप्फर हुसैन जैसे लेखकों ने 'इस्लाम में मांसाहार वजित' नामक ग्रन्थ लिख डाला है।

आधुनिक तकनीक

समय के साथ कदम मिलाकर चलना सफलता की पहली आवश्यकता है। अतः शाकाहार प्रचार-प्रसार के लिए "वंदना वेजिटेरिअन कौंसिल" भी आधुनिक उन्नत तकनीक जैसै कि इंटनेट, ईमेल इत्यादि के माध्यम से संस्थागत कार्यों का संचालन करेगी।

विचारणीय

मांंसाहार मानव शरीर के उदर को कब्रिस्तान बनाने जैसा है। जैसे मृत शरीर भूमि के भीतर रखा जाता है, वैसे ही पशु को मारकर उसके मृत हुए मांस को पेट में डालना उचित नहीं है। यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि जब पशु को वध के लिए खींचा जाता हैतब उसके शरीर में एख जहरीला तरल पदार्थ पैदा होता है। इसे मांसाहार करने वाले जब मांस के साथ पेट में डालते हैं तो वह धीरे-धीर व्यक्ति को कैंसर, ब्लडप्रेशर, शुगर एवं लकवे जैसी मरणान्तक बीमारी की ओर ले जाता है। 'जियो और जीने दो' का सिद्धान्त तत्वज्ञान के रूप में संतो ने ही इसलिए दिया है। मानव का कल्याण इसी में निहित है कि वह मांसाहार को छोड़कर शाकाहार को अपनाए। मांसाहार मानव शरीर के लिए सर्वथा वर्जित है। मांसाहार को छोड़िए और शाकाहारी बनकर जीवन को श्रेष्ठ बनाइये।

हमारी जवाबदारी

यह सभ्य समाज की जवाबदारी है कि वह समाज में जारी बुराईयों को दूर करने के लिए सार्थक प्रयास करें। हमारा यह प्रयास समाज को मांसाहार के दुष्प्रभावों से मुक्त करके एख स्वस्थ्य, सुखी और दीर्घजीवी समाज का निर्माण करना और जींव-हिंसा के विरोध में समाज के सभ्य व शिक्षितत वर्ग को संगठित करना है, ताकि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करे जिसमें सभी स्वस्थ्य रहे, सभी सुखी रहे सभी दीर्घायु होंवे और समस्त जीव मात्र निर्भय रहे।

इस हेतु आप घरों के आंगन और छतों में अपनी पसंद की सब्जियाँ लगा सकते हैं। गाँवो में मैदानों में और कई शहरों में छतों पर हरी सब्जियाँ लगाई जा रही है।

ध्येय

आग्रह

ऋषि-मुनियों कल्पना के समाज की रचना में योगदान देकर समाज की रचना में योगदान देकर अपने समाजिक एवं राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह करें।

शुभकामनाएं सहित

चतुर्भुज अग्रवाल

चतुर्भुज अग्रवाल

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